तुम हीं हो सब कुछ,
तुमसे ही हैं आशायें आपार,
तुम हीं हो सृष्टि का आधार I
तुम हीं हो प्रश्न, तुम हीं हो उत्तर,
तुम हीं हो सूक्ष्म,तुम हीं हो वृहतरI
तुम हीं हो रात और दिन निरंतर,
तुम हीं हो धूप और छाओं का अंतर I
तुम हीं हो गीता का मूल सार,
तुम हीं हो राधा का अप्रतिम इंतेज़ार I
तुम हीं हो मुरली की मधुर बयार,
तुम हीं हो साँसों का सतत श्रृंगार I
तुम हीं हो नभ में चंद्र और दिनकर,
तुम हीं हो बीज में अंकुर तत्पर I
तुम हीं हो स्वर,तुम हीं हो अक्षर,
तुम हीं हो भगवन,तुम हीं हो ईश्वरI
फिर तुम क्यूँ हो खड़े निरूतर?
फिर तुम क्यूँ हो नीरव पत्त्थर?
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नीरव: मौन,चुप, शांत, मूक
सुंदर पंकतिया 👍
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन !
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