Saturday, August 11, 2018

हम टूट भी जाते हैं तो ज़र्रा नही हिलता...



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हम टूट भी जाते हैं तो ज़र्रा नही हिलता,
तुम फूँक भी मारो  तो बनता है रास्ता I

हम डूब भी जायें तो मिलता नही मोती,
तुम रह के किनारे पे पा जाते हो ख्यातिI

हम काट काठ जोड़ें पर बनती नही कश्ती,
तुम एक घूँट में हीं पी जाओ दरिया की हस्ती I 

हमारा जीवन है, जैसे एक जलती हुई भट्टी,
तुम देखते हो ऐसे हमें, जैसे हम कोई फेंकी हुई रद्दी I

हम उड़ जातें है, जैसे शाख से टूटा हुआ पत्ता,
तुम उड़ते हो जैसे, तुमसे हीं गुल, तुमसे हीं गुलिस्ताँ I

हम दिखते हैं, जैसे हों, लफ्ज़ से लूटा हुआ नुक़्ता,
तुम दिखाते हो, जैसे हो तुम हीं ख़ुदा, तुम हीं फरिश्ता I

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2 comments:


  1. नीरज, बहुत सुंदर पंकतिया है| ☺

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  2. धन्यवाद सचिन इस उत्साहवर्धन के लिए !

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