मैं हर रोज़ एक नयी उम्मीद बांधता हूँ,
सपनों के जीने की तावीज़ बांधता हूँ I
कल आज से बेहतर होगा,
आज कल का रहबर होगा,
इसी उम्मीद की दहलीज़ बांधता हूँ I
वो कहते हैं तुम्हारा नही कोई काम,
तुम्हारे लिए नही है कोई ईनाम I
फिर भी पसीने की परछाई में,
कुछ चाँद तारों के बीज महफूज़ बांधता हूँ,
मैं सपनो के जीने की तावीज़ बांधता हूँ I
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Wah.. Wah.....Wah..Wah, Bahut Khub Likha Hai Aapne 👍 Neeraj
ReplyDeleteBahut bahut dhanyawad Sachin iss hausala afzaai ke liye.
ReplyDeleteBahut Aachhi Panktiya Hai :) Neeraj
ReplyDeleteBahut Bahut Aabhar Varsha.
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