मैने हीं तरु को काटा था,
मैने हीं सरि को पाटा था I
पर उसका कारण जीवन था,
उसका कारण क्षुधा का पोषण था I
मैं अज्ञानी भूल गया,
अपने लोभ में झूल गया,
के प्रकृति ही निर्माता है,
के प्रकृति ही विधाता है I
अब जब अंबर ने मुझको कोसा है,
बस तुझ पे हीं मेरा भरोसा है I
दे दिनकर को आज्ञा,
ले सोख वो बहता प्रलय,
दे वापस मेरा हँसता निलय I
मानता हूँ मेरी ग़लती है,
जो प्रकृति मुझसे रूठी है I
पर मैं भी तो हूँ अंश तेरा,
रोक ले ये विध्वंस तेरा I
इस बार ये बेड़ा पार कर,
इस बार तो उद्धार कर I
मैं भी करता हूँ ये प्राण,
दूँगा तरु नदिया को नया जीवन,
दूँगा द्रुम दरिया को नया आँगन I
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very nice neeraj ji
ReplyDeleteThanks Deepshikha jee!
ReplyDeleteamazing. after a long time got to read in hindi.
ReplyDeleteThanks Bhawana for your comment and visit.
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