भगवान ने चंद्र बोल दियाI
भगवान ने अंत बोल दिया,
भगवान ने अनंत बोल दियाI
भगवान ने पवन बोल दिया,
भगवान ने गगन बोल दिया I
भगवान ने चिड़िया बोल दिया,
भगवान ने चुहिया बोल दिया I
भगवान ने जल बोल दिया,
भगवान ने थल बोल दिया I
भगवान ने फूल बोल दिया,
भगवान ने फल बोल दिया I
भगवान ने अग्नि बोल दिया,
भगवान ने ध्वनि बोल दियाI
अंत में भगवान ने इंसान बोल दिया,
और इंसान ने भगवान को पाशेमान तोल दियाI
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पाशेमान : शर्मिंदा
बहूत सुंदर पंकतिया 👍
ReplyDeleteधन्यवाद वर्षा कविता की सराहना के लिएI
ReplyDeleteआपके भीतर कवि को जानना अच्छा लगता है :) नीरज
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सचिन I आपका मेरे ब्लॉगपोस्ट पे निरंतर आगमन मुझे भी उत्साह प्रदान करता है,प्रेरित करता है लिखने को I बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteawesome Neeraj, love those last lines.
ReplyDeleteThanx a lot Bhawana for appreciating the post.
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