Friday, August 10, 2018

मैं हर रोज़ एक नयी उम्मीद बांधता हूँ...



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मैं हर रोज़ एक नयी उम्मीद बांधता हूँ,
सपनों के जीने की तावीज़ बांधता हूँ I

कल आज से बेहतर होगा,
आज कल का रहबर होगा,
इसी उम्मीद की दहलीज़ बांधता हूँ I

वो कहते हैं तुम्हारा नही कोई काम,
तुम्हारे लिए नही है कोई ईनाम I


फिर भी पसीने की परछाई में,
कुछ चाँद तारों के बीज महफूज़ बांधता हूँ,
मैं सपनो के जीने की तावीज़ बांधता हूँ I

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