उस सूरज से जो सागर,
के गोदी का बच्चा है,
जो दुनिया के पहले,
इंसान सा सच्चा है I
हाँ मैं मिलना चाहता हूँ,
बरफ के उस चादर से,
जिसने छुपाया है,
मानव मूल का रहस्य,
बड़े आदर से I
हाँ मैं मिलना चाहता हूँ,
तारों के उस मेले से,
जो ले जाता है दूर,
मुझे ज़िंदगी के झमेले से I
हाँ मैं मिलना चाहता हूँ,
सेब, अंगूर की उस हरियाली से,
जो मिलवाता है हर रोज़,
दुनिया को उसकी दीवाली से I
हाँ मैं मिलना चाहता हूँ,
कैलाश के उन शिखरों से,
जिसकी बयार ने बातें की थी,
#TheBlindList
#SayYesToTheWorld
कुन्तल : केश, बाल
निकर : झुंड, समूह
हाँ मैं मिलना चाहता हूँ,
ReplyDeleteबरफ के उस चादर से,
जिसने छुपाया है,
मानव मूल का रहस्य,
बड़े आदर से....बहुत सुन्दर भाव
धन्यवाद योगी सारस्वत जी !
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन !
ReplyDeleteअच्छी कविता लिखी नीरज
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार वर्षा!
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