ये बुतों के गिरने का मौसम है ,
ये इबादतों के मरने का मौसम है I
ये परदों से पंगा लेने का मौसम है,
ये चेहरों के नंगा होने का मौसम है I
ये ज़ोर के मुर्दा होने का मौसम है,
ये भोर के ज़िंदा होने का मौसम है I
ये डर की डोर तोड़ने का मौसम है ,
ये अगर की डगर छोड़ने का मौसम है I
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पश्चलेख : भारत के मी टू अभियान से प्रेरित रचना I
love these rhyming words at the end of each line. Keep it up.
ReplyDeleteThanx Bhawana for appreciating the post.
ReplyDeleteWell written. Theres so much spoken in these few lines. Loved reading the poem Neeraj.
ReplyDeleteThanx Dipali for appreciating the post.
ReplyDeletevery nice neeraj ji
ReplyDeleteThanx Deepshikha Jee!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना, नीरज जी।
ReplyDeleteधन्यवाद ज्योति जी !
DeleteExcellent thoughts and excellent narration.
ReplyDeleteThanx Indu for appreciation of the post.
DeleteBahut badiya neeraj bhai keep it up
ReplyDeleteThanx Abhay bhai for your lovely comment!
Deleteसुंदर शब्द में कविता लिखी गई
ReplyDeleteबहुत खुब नीरज
बहुत बहुत आभार वर्षा!
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