कैसे नैया को भंवर में छोड़े कोई ?
कैसे हार का आडंबर सहे कोई ?
कैसे तिरस्कार का बवंडर सहे कोई ?
कैसे अपनों की आँख में पानी सहे कोई ?
कैसे सपनों की कोख में वीरानी सहे कोई ?
कैसे दिक्कत को किस्मत पे छोड़े कोई ?
कैसे हिम्मत को गफलत पे छोड़े कोई ?
कैसे ज़िंदगी को इधर उधर छोड़े कोई ?
कैसे ज़िंदगी को बस अगर पे छोड़े कोई ?
कैसे समर को अधर में छोड़े कोई ?
कैसे नैया को भंवर में छोड़े कोई ?
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कैसे अपनों की आँख में पानी सहे कोई ?
ReplyDeleteकैसे सपनों की कोख में वीरानी सहे कोई ? beautiful Neeraj.... loved these lines....
Thanx Bhawana for your wonderful words.
ReplyDeleteदिल को छूने वाली, सबसे अच्छी कविता लिखी
ReplyDeleteनीरज
बहुत बहुत आभार वर्षा, आपके उत्साहवर्धन के लिए!
Deleteनीरज बहुत अच्छी कविता। 👍 आप इन शब्दों को कहां से प्राप्त करते हैं :)
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सचिन I कुछ शब्द तो ज़िंदगी दे जाती है और कुछ आप जैसे साथी ब्लॉगरों का उत्साहवर्धन I
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