कोई उम्र तो होगी,
मुक़द्दर के स्याह रात की I
कोई उम्र तो होगी,
आँखों में तैरते आँसुओं के बारात की I
कोई उम्र तो होगी,
इंसान से बने मज़बूर की I
कोई उम्र तो होगी,
सिने में जलते तंदूर की I
कोई उम्र तो होगी,
चेहरे पे नाचते गुरूर की I
कोई उम्र तो होगी,
आत्मा को सब होते मंज़ूर की I
कोई उम्र तो होगी,
तूफान के इब्तिसाम की I
कोई उम्र तो होगी,
मेरे सब्र के इम्तिहान की I
कोई उम्र तो होगी,
कराहते हुए जज़्बात की I
कोई उम्र तो होगी,
बिगड़ी हुई हर बात की I
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इब्तिसाम: मुस्कुराहट, मुस्कान
इब्तिसाम: मुस्कुराहट, मुस्कान
बहुत खूब !!!!
ReplyDeleteबिगड़ी हुई बात संभ्भल जाती है, बस सब्र की जरुरत है।
आभार रेखा जी!
ReplyDeleteVery nice poem. I liked it.
ReplyDeleteThanks Abhijit for appreciation of the post.
ReplyDeleteThere's hope for a brighter moment and nothing stays the same. There is definitely an "Umar" to everything. Well expressed, Neeraj.
ReplyDeleteYes somehow we all wait for this 'Umar' to cease to be alive and make way for a new dawn.
ReplyDeleteThanks for your visit and appreciation of the post Dipali.
Bahut hi sundar.
ReplyDeleteThanks Jyotirmoy!
ReplyDeleteकोई उम्र तो होगी,
ReplyDeleteबिगड़ी हुई हर बात की I superb
Thanx Bhawana.
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