सब बात तुझमें हैं,
सारी औकात तुझमें हैं,
तो पता नहीं... मैं हूँ की नहीं I
सारी सच्चाई तुझमें है,
सारी परछाई तुझमें है,
तो पता नहीं... मैं हूँ की नहीं I
सारी इज़्ज़त तेरी है,
सारी मशिय्यत तेरी है ,
तो पता नहीं... मैं हूँ की नहीं I
सारी अज़्मत तेरी है,
और सारी तोहमत मेरी है,
तो पता नहीं... मैं हूँ की नहीं I
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मशिय्यत: इच्छा,चाहत
अज़्मत: महानता
मशिय्यत: इच्छा,चाहत
अज़्मत: महानता
बहुत अच्छी कविता नीरज
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सचिन!
ReplyDeleteवाह !!! क्या बात है। बहुत कूब।
ReplyDeleteधन्यवाद रेखा जी!
ReplyDeletelovely, beautiful read for the day
ReplyDeleteThanks Bhawana for your visit and appreciation of the post.
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