Saturday, December 15, 2018

अब डरता हूँ...



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भाग - 1

अब डरता हूँ,
किसी को यार करने में I

अब डरता हूँ,
खुद पे ऐतबार करने में I

अब डरता हूँ,
खुद को तैयार कहने में I

अब डरता हूँ,
खुद को बेक़रार कहने में I

अब डरता हूँ ,
सपनों पे सवार रहने में I

अब डरता हूँ,
अपनों के नागवार रहने में I

भाग -2

अब डरता हूँ, 
रिश्तों के बाज़ार होने पे I

अब डरता हूँ, 
फरिश्तों के बेज़ार होने पे I

अब डरता हूँ,
ग़ज़र का दीदार होने पे I

अब डरता हूँ,
मुक़द्दर का व्यापार होने पे I

अब डरता हूँ,
वायदों के बार बार होने पे I

अब डरता हूँ,
उम्मीदों के तार तार होने पे I

9 comments:

  1. I thought these thoughts came in my life.

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    1. Yes these are reflection of lives that we live.

      Thanks for your visit and comment Pranita Jee.

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  2. मैंने मुझे देखा कुछ पंक्तियो में लगा की ये तो मेरे मन में कही बार आता है |
    बहुत ही सुंदर लिखा नीरज 👌👌

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद वर्षा!

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  3. Replies
    1. Haan wo to hai!

      Thanks for visit and comment Indu Jee.

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  4. यही जीवन हैं। बहुत सुंदर रचना।
    नीरज अगर तुम्हें गलत ना लगे तो इन पंक्तियो को देखो। प्यार या यार ?

    अब डरता हूँ,
    किसी को यार करने में I

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    1. किसी को 'यार करने में' से यहाँ मतलब है किसी को दोस्त बनाने से I आशा करता हूँ की 'यार करने में' का सही सन्दर्भ अब स्पष्ट हो गया होगा I

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