अब डरता हूँ,
किसी को यार करने में I
अब डरता हूँ,
खुद पे ऐतबार करने में I
अब डरता हूँ,
खुद को तैयार कहने में I
अब डरता हूँ,
खुद को बेक़रार कहने में I
अब डरता हूँ ,
सपनों पे सवार रहने में I
अब डरता हूँ,
अपनों के नागवार रहने में I
भाग -2
अब डरता हूँ,
रिश्तों के बाज़ार होने पे I
अब डरता हूँ,
फरिश्तों के बेज़ार होने पे I
अब डरता हूँ,
ग़ज़र का दीदार होने पे I
अब डरता हूँ,
मुक़द्दर का व्यापार होने पे I
अब डरता हूँ,
वायदों के बार बार होने पे I
अब डरता हूँ,
उम्मीदों के तार तार होने पे I
I thought these thoughts came in my life.
ReplyDeleteYes these are reflection of lives that we live.
DeleteThanks for your visit and comment Pranita Jee.
मैंने मुझे देखा कुछ पंक्तियो में लगा की ये तो मेरे मन में कही बार आता है |
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर लिखा नीरज 👌👌
बहुत बहुत धन्यवाद वर्षा!
Deletezamana he aisa hai,kya karen.
ReplyDeleteHaan wo to hai!
DeleteThanks for visit and comment Indu Jee.
बहुत आभार!
ReplyDeleteयही जीवन हैं। बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteनीरज अगर तुम्हें गलत ना लगे तो इन पंक्तियो को देखो। प्यार या यार ?
अब डरता हूँ,
किसी को यार करने में I
किसी को 'यार करने में' से यहाँ मतलब है किसी को दोस्त बनाने से I आशा करता हूँ की 'यार करने में' का सही सन्दर्भ अब स्पष्ट हो गया होगा I
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