आ के कभी मिल I
गर तू है तो
पत्थर पे फूल बन के खिल I
गर तू है तो
आंसू में आशा बन के मिलI
गर तू है तो
प्रयास का आकाश बन के मिल I
गर तू है तो
हारों का अभिमान बन के मिल I
गर तू है तो
रेंगने वालों की उड़ान बन के मिल I
गर तू है तो
अहंकार का अपमान बन के मिल I
गर तू है तो
लबों पे खुशिओं की दूकान बन के मिल I
गर तू है तो
मुझसे मेरी पहचान बन के मिल I
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Bahut khub!
ReplyDeleteBahut aabhar Mridula Jee
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