खामोश ही था वो,
पर उसकी नज़र बोलती थी I
मेरे दिल में चोर था ,
उसे परत दर परत खोलती थी I
आइना देखना छोड़ दिया हमने ,
अब मेरी सूरत उसकी...
हंसी में छपती थी I
और बारिश में घंटो भीगता था मैं,
तब जा के वो पल भर को बिजली सी कौंधती थी I
###
No comments:
Post a Comment