Wednesday, March 27, 2019

रास्ता लिपट के रह गया पाँव में...




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रास्ता लिपट के रह गया पाँव में,
मंज़िल सिमट के रह गई
सपनों  के गांव  में I

हम इंतज़ार करते रहे,
उम्मीदों की छाँव  में,
और ज़िन्दगी बिखर के रह गयी,
बस ख्वाबों की अनाओं में I

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अना: घमंड

10 comments:

  1. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, नीरज जी।

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    1. कविता की सराहना के लिए बहुत आभार ज्योति जी !

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  2. Just awesome one, can relate with it deeply,the last four lines depicting my life...i felt so.

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    1. Thanks Jyotirmoy for for your wonderful words of appreciation of the post.

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  3. उम्दा रचना। राहें, यादें, नातें, बातें ........ कुछ ऐसे हीं होते है#ं।

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  4. बहुत आभार रेखा जी !

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