वो समझते हैं के मैं,
ईट तोड़ रहा हूँ,
वो क्या जाने के मैं,
रास्ता जोड़ रहा हूँ I
वो समझते हैं के मैं,
लकीर लिख रहा हूँ,
वो क्या जाने के मैं,
तक़दीर लिख रहा हूँ I
वो समझते हैं के मैं,
सो रहा हूँ,
वो क्या जानें के मैं,
सपने बो रहा हूँ I
वो समझते हैं के,
मैं मौन हूँ,
वो क्या जानें के ,
मैं खोज रहा हूँ ,
के मैं कौन हूँ ?
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बहुत ही रोचक कविता 👍 नीरज
ReplyDeleteकविता की सराहना के लिए बहुत आभार सचिन!
DeleteLoved each and every stanza, views of creations there though it appears different to others....beautiful presentation.
ReplyDeleteI really appreciate your understanding of creative lines written by me.
DeleteThanks for your visit and comment.
बहुत सुंदर नीरज जी । हृदय के तल तक पहुँचने वाली पंक्तियां हैं ये ।
ReplyDeleteकविता की सराहना के लिए बहुत आभार जीतेन्द्र जी I
DeleteAur ye eak sundar khoj hai! Bahut hi sunder Neeraj!
ReplyDeleteBahut dhanyawad Mridula jee!
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति, नीरज जी।
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद ज्योति जी !
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर पंक्तियाँ नीरज����
ReplyDeleteहर एक पंक्तियों को देखने नजरिया अलग हैं।
कविता की सराहना के लिए बहुत धन्यवाद वर्षा!
ReplyDeleteलोगों के समझने का क्या है। हर किसी की की अपनी सोंच अपना नजरिया। बङी अच्छी कविता है।
ReplyDeleteकविता की सराहना के लिए धन्यवाद रेखा जी!
DeleteNicely written...human's perception.
ReplyDeleteThanks Ranjana jee for appreciation of the poem.
Deletekya baat hai, dil ko chhu gai ,kavita
ReplyDeleteKavita ki sarahna ke liye bahut dhanyawad Gurjeet jee.
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