Tuesday, April 2, 2019

वो समझते हैं के मैं...



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वो समझते हैं के मैं,
ईट तोड़ रहा हूँ,
वो क्या जाने के मैं,
रास्ता जोड़ रहा हूँ I

वो समझते हैं के मैं,
लकीर लिख रहा हूँ,
वो क्या जाने के मैं,
तक़दीर लिख रहा हूँ I

वो समझते हैं के मैं,
सो रहा हूँ,
वो क्या जानें के मैं,
सपने बो रहा हूँ I

वो समझते हैं के,
मैं मौन हूँ,
वो क्या जानें के ,
मैं खोज रहा हूँ ,
के मैं कौन हूँ ?
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18 comments:

  1. बहुत ही रोचक कविता 👍 नीरज

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    1. कविता की सराहना के लिए बहुत आभार सचिन!

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  2. Loved each and every stanza, views of creations there though it appears different to others....beautiful presentation.

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    1. I really appreciate your understanding of creative lines written by me.

      Thanks for your visit and comment.

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  3. बहुत सुंदर नीरज जी । हृदय के तल तक पहुँचने वाली पंक्तियां हैं ये ।

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    1. कविता की सराहना के लिए बहुत आभार जीतेन्द्र जी I

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  4. Aur ye eak sundar khoj hai! Bahut hi sunder Neeraj!

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  5. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, नीरज जी।

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  6. बहुत धन्यवाद ज्योति जी !

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  7. बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ नीरज����
    हर एक पंक्तियों को देखने नजरिया अलग हैं।

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  8. कविता की सराहना के लिए बहुत धन्यवाद वर्षा!

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  9. लोगों के समझने का क्या है। हर किसी की की अपनी सोंच अपना नजरिया। बङी अच्छी कविता है।

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    1. कविता की सराहना के लिए धन्यवाद रेखा जी!

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  10. Nicely written...human's perception.

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    1. Thanks Ranjana jee for appreciation of the poem.

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  11. kya baat hai, dil ko chhu gai ,kavita

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    1. Kavita ki sarahna ke liye bahut dhanyawad Gurjeet jee.

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