Monday, March 18, 2019

तो फिर मैं क्यूँ हूँ ?

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मैं हूँ... के मैं नहीं हूँ ?
जो मैं हूँ, तो मैं कब हूँ ?
जो नहीं, तो मैं कब नहीं हूँ ?

मैं हूँ तो कहाँ हूँ ?
मैं अभी हूँ के मैं... कभी हूँ ?

मैं सत्य हूँ या के भ्रम हूँ ?
मैं स्थूल हूँ के सूक्ष्म हूँ ?

मैं पूर्ण हूँ या के
सिर्फ़ एक पल हूँ ?

मैं क्षणिक हूँ के निरंतर हूँ ?
मैं तेरा अंतर हूँ या
तुझसे अंतर हूँ ?

जो मैं तेरा अंतर हूँ,
तो सब कुछ हूँ ,
और जो तुझसे अंतर हूँ,
तो फिर मैं क्यूँ हूँ ? 
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13 comments:

  1. Wow !!! very deep and insightful, yes, there are so many questions those are yet to be revealed, not only philosophers rather scientists are also in search of those.
    Beautiful presentation.

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    1. Thanks a lot Jyotirmoy for appreciating the quality of the post.

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  2. All the confusion and uncertainty of life well expressed with words.

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    1. Thanks Ranjana Jee for your appreciation of the post.

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  3. आज इंसान ने आसमान को छू लिया लेकिन इस मैं को इंसान समझ ही नहीं पाया। बहुत सुंदर, नीरज जी।

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    1. बहुत आभार ज्योति जी!

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  4. गहरी अौर अर्थपुर्ण है। यह प्रश्न तो एक शाश्वत अौर सनातन जिज्ञासा है। उत्तर के खोज में कितने ज्ञानियों , संतों ने तप किया। पर सिर्फ विद्वान हीं इस दुर्बोध रहस्य को जान पाए। यह प्रश्न अक्सर मेरे मन में भी आता है। कभी उत्तर मिल जाए, तब मुझे भी अवश्य बताईएगा। :-)

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  5. Replies
    1. कविता * का मतलब समझ नहीं आया... बाकी... जी हाँ प्रश्नो से जुड़ा हमारा अस्तित्व अपना उत्तर तो चाहता हीं है I कविता की सराहना के लिए बहुत धन्यवाद I

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  6. Sach mein,yadi hum us mein hain to hain,varna nahin hain.

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