Friday, March 8, 2019

लड़ाई केवल सरहदों पर हीं नहीं...




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लड़ाई केवल सरहदों पर हीं नहीं,
धड़कते ज़िस्म की हदों में भी है I
लड़ाई केवल सरहदों पर हीं नहीं,
दिल ओ दिमाग़ की हदों में भी है I

लड़ाई केवल गोलियों से हीं नहीं,
छलनी करती बोलियों से भी है I
लड़ाई केवल ज़मीन आसमान में हीं नही,
ज़िस्म की झड़ती पहचान में भी है I

लड़ाई केवल उफनते,
मिथ्याभिमान से हीं नही,
ज़िस्म में सुलगते,
क़ातिल अनजान से भी है I

लड़ाई केवल लोहे के 
लहराते टुकड़ों से हीं नहीं,
आँखों में जनम लेती और मरती,
अश्रु की खारी बूँदों से भी है I

लड़ाई केवल सरहदों पर हीं नहीं,
धड़कते ज़िस्म की हदों में भी है I
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4 comments:

  1. लड़ाई केवल लोहे के
    लहराते टुकड़ों से हीं नहीं,
    आँखों में जनम लेती और मरती,
    अश्रु की खारी बूँदों से भी है I

    सच कहा नीरज!! सुंदर रचना है।

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  2. What a poem !!!! wonderful one,agree with you, specially loved the 2nd and 4th stanza.

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