लड़ाई केवल सरहदों पर हीं नहीं,
धड़कते ज़िस्म की हदों में भी है I
लड़ाई केवल सरहदों पर हीं नहीं,
दिल ओ दिमाग़ की हदों में भी है I
लड़ाई केवल गोलियों से हीं नहीं,
छलनी करती बोलियों से भी है I
लड़ाई केवल ज़मीन आसमान में हीं नही,
ज़िस्म की झड़ती पहचान में भी है I
लड़ाई केवल उफनते,
मिथ्याभिमान से हीं नही,
ज़िस्म में सुलगते,
क़ातिल अनजान से भी है I
लड़ाई केवल लोहे के
धड़कते ज़िस्म की हदों में भी है I
लड़ाई केवल सरहदों पर हीं नहीं,
दिल ओ दिमाग़ की हदों में भी है I
लड़ाई केवल गोलियों से हीं नहीं,
छलनी करती बोलियों से भी है I
लड़ाई केवल ज़मीन आसमान में हीं नही,
ज़िस्म की झड़ती पहचान में भी है I
लड़ाई केवल उफनते,
मिथ्याभिमान से हीं नही,
ज़िस्म में सुलगते,
क़ातिल अनजान से भी है I
लड़ाई केवल लोहे के
लहराते टुकड़ों से हीं नहीं,
आँखों में जनम लेती और मरती,
आँखों में जनम लेती और मरती,
अश्रु की खारी बूँदों से भी है I
लड़ाई केवल सरहदों पर हीं नहीं,
धड़कते ज़िस्म की हदों में भी है I
लड़ाई केवल सरहदों पर हीं नहीं,
धड़कते ज़िस्म की हदों में भी है I
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लड़ाई केवल लोहे के
ReplyDeleteलहराते टुकड़ों से हीं नहीं,
आँखों में जनम लेती और मरती,
अश्रु की खारी बूँदों से भी है I
सच कहा नीरज!! सुंदर रचना है।
बहुत आभार वर्षा !
DeleteWhat a poem !!!! wonderful one,agree with you, specially loved the 2nd and 4th stanza.
ReplyDeleteThanks Jyotirmoy for appreciation of the post.
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