Monday, January 28, 2019

कुछ समंदर का भंवर देखना था...



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कुछ समंदर का भंवर देखना था,
कुछ मुक़द्दर का असर देखना था I

कुछ तूफान का क़हर देखना था,
कुछ अपमान का ज़हर देखना था I

कुछ प्रस्तर में अंकुर देखना था,
कुछ जलधर का शरर देखना था I

कुछ सपनों में अग्यार देखना था,
कुछ अपनो में अहंकार देखना था I

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शरर : चिंगारी
अग्यार : अजनबी
जलधर : बादल
प्रस्तर : पत्थर

19 comments:

  1. Replies
    1. Thanks Abhijit for letting me know that you enjoyed reading it. Thanks a lot.

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  2. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, नीरज जी।

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  3. Life's learning comes through the stumbling blocks and setbacks that come along the way. Well expressed and an emotional poem. Enjoyed the read.

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    1. Thanks a lot Dipali for your wonderful comments on the post.

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    2. This comment has been removed by the author.

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  4. लाजवाब कविता। बहुत कुछ लगा जैसे मेरे मन की बातों से मिलती - जुलती बातें आपने काव्यमय रुप में लिख दिया है। क्या इसे मैं share कर सकती हूँ?

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    1. ये मेरे लिए बड़े मान की बात है जो आप इस कविता को शेयर करना चाहती हैं I जी ज़रूर, आप शेयर कर सकतीं हैं इसे I

      कविता की सराहना के लिए बहुत आभार I

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    2. इसे कैसे Share करूँ? आपके नाम के साथ copy-paste या किसी अौर तरीके से?

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    3. आप जैसे सुविधाजनक समझें वैसे शेयर कर सकतीं हैं I

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