कुछ समंदर का भंवर देखना था,
कुछ मुक़द्दर का असर देखना था I
कुछ तूफान का क़हर देखना था,
कुछ अपमान का ज़हर देखना था I
कुछ प्रस्तर में अंकुर देखना था,
कुछ जलधर का शरर देखना था I
कुछ सपनों में अग्यार देखना था,
कुछ अपनो में अहंकार देखना था I
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शरर : चिंगारी
अग्यार : अजनबी
जलधर : बादल
प्रस्तर : पत्थर
Excellent as usual!
ReplyDeleteThanks Indu for appreciation of the post.
DeleteAwesome thoughts.
ReplyDeleteThanks Jyotirmoy.
DeleteNice poem. Enjoyed reading.
ReplyDeleteThanks Abhijit for letting me know that you enjoyed reading it. Thanks a lot.
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति, नीरज जी।
ReplyDeleteआभार ज्योति जी!
DeleteLife's learning comes through the stumbling blocks and setbacks that come along the way. Well expressed and an emotional poem. Enjoyed the read.
ReplyDeleteThanks a lot Dipali for your wonderful comments on the post.
DeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteलाजवाब कविता। बहुत कुछ लगा जैसे मेरे मन की बातों से मिलती - जुलती बातें आपने काव्यमय रुप में लिख दिया है। क्या इसे मैं share कर सकती हूँ?
ReplyDeleteये मेरे लिए बड़े मान की बात है जो आप इस कविता को शेयर करना चाहती हैं I जी ज़रूर, आप शेयर कर सकतीं हैं इसे I
Deleteकविता की सराहना के लिए बहुत आभार I
इसे कैसे Share करूँ? आपके नाम के साथ copy-paste या किसी अौर तरीके से?
Deleteआप जैसे सुविधाजनक समझें वैसे शेयर कर सकतीं हैं I
DeleteVery optimistic
ReplyDeleteThanks Ranjana Jee!
DeleteBeautiful poem. Enjoyed.
ReplyDeleteThanks S Singh Jee.
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