वक़्त लगता है,
सूरज को चंदा बन पिघलने मे I
वक़्त लगता है,
चंदा को सूरज बन जलने में I
वक़्त लगता है,
बचपन के जवान बनने में I
वक़्त लगता है,
जवान के सयान बनने में I
वक़्त लगता है,
कूक को पहचान बनने में I
वक़्त लगता है,
भूख को बेईमान बनने में I
वक़्त लगता है,
बूँद को तूफान बनने में I
वक़्त लगता है,
इंसान को भगवान बनने में I
###
So true, nice interpretations, loved it.
ReplyDeleteThanks Jyotirmoy for your visit to the post and comment on it.
ReplyDeleteVery nice neeraj...well said....keep writing ...God bless you.
ReplyDeleteThanks Deepshikha Jee for your lovely and encouraging words. Thanks for your wishes.
ReplyDeleteअच्छी कविता, गहरी बात लिखी है आपने।
ReplyDeleteधन्यवाद रेखा जी!
Deleteबहुत बढ़िया प्रस्तूति, नीरज जी।
ReplyDeleteधन्यवाद ज्योति जी!
Deletesuch mein, superb......
ReplyDeleteThanx Bhawana!
Deleteमैं वास्तव में आपके लेखन से प्रभावित हूँ। नियमित लिखते रहें। नीरज ☺
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सचिन !
ReplyDeleteTrue. Everything takes time. Product done in hurry may be undercooked and unprepared. Well said.
ReplyDeleteThanks Abhijit for visiting and appreciating the post.
ReplyDeleteKya khub,achha ya bura,dono banne mein vakt lagta hai.
ReplyDeleteThanks Indu for your visit and comment.
DeleteThanks Ranjana Jee for your visit to the post and comment.
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कहा नीरज।
ReplyDeleteसच है की वक्त से पहले कुछ नही मिलता।
कहावत है - सबर का फल मीठा ही होता है।।
कविता की स्रहना के लिए बहुत आभार वर्षा !
ReplyDelete