दो क़दमों से भागते सपने...
दो क़दमों से भागते सपने,
छूना चाहते हैं आकाश,
होना चाहते हैं पंख I
दो तालों में उलझी धड़कनें ,
बुनना चाहती हैं प्रबल प्रयास ,
फूंकना चाहती हैं विजय शंख I
दो आँखों में चंदा तारे,
मंज़िल को दे रहे पुकारे ,
बहुत देर तक राह तकी,
अब सोते हैं हम,
थके हारे ...
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बहुत सुंदर प्रस्तूति।
ReplyDeleteआभार ज्योति जी!
DeleteHow did you read the present condition of my mind !!!!!!! i really wonder...very nicely expressed.
ReplyDeleteHa ha ha ...two creative people can sometimes think alike and this is a well established fact. Anyways thanks for your incessant support and appreciation for my poems.
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