किसी को क्या मालूम,
हम आँखों में क्या छुपाए बैठे हैं ?
उससे बिछूड़ने का गम, उसकी यादों का शबनम,
और टूटे ख्वाबों के कुछ शीशे गड़ाए बैठे हैं I
किसी को क्या मालूम,
हम आँखों में क्या छुपाए बैठे हैं ?
वो जागती रातों की नींद, वो बिखरी उम्मीद,
और कुछ मुर्दा एहसासों की प्रीत छुपाए बैठे हैं I
किसी को क्या मालूम,
हम आँखों में क्या छुपाए बैठे हैं ?
वो गुज़री हुई हर बात, किस्मत की रूठी रात
और डाँवाडोल अपनी औकात छुपाए बैठे हैं
किसी को क्या मालूम,
हम आँखों में क्या छुपाए बैठे हैं ?
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Can relate with it very deeply...loved it a lot. Beautiful presentation.
ReplyDeleteThanks Jyotirmoy for appreciation of the poem.
DeleteWah kya baat hai!
ReplyDeleteThanks Sonal!
Deletebeautiful...neeraj..keep writing
ReplyDeleteThanks Deepshikha Jee!
ReplyDeleteशब्द नही मेरे पास.. खूप सुंदर लिखते हो नीरज
ReplyDeleteबहुत आभार वर्षा !
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