Monday, September 23, 2019

किसी को क्या मालूम...




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किसी को क्या मालूम,
हम आँखों में क्या छुपाए बैठे हैं ?

उससे बिछूड़ने का गम, उसकी यादों का शबनम,
और टूटे ख्वाबों के कुछ शीशे गड़ाए बैठे हैं I

किसी को क्या मालूम,
हम आँखों में क्या छुपाए बैठे हैं ?

वो जागती रातों की नींद, वो बिखरी उम्मीद,
और कुछ मुर्दा एहसासों की प्रीत छुपाए बैठे हैं I

किसी को क्या मालूम,
हम आँखों में क्या छुपाए बैठे हैं ?

वो गुज़री हुई हर बात, किस्मत की रूठी रात
और डाँवाडोल अपनी औकात छुपाए बैठे हैं

किसी को क्या मालूम,
हम आँखों में क्या छुपाए बैठे हैं ?
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