Monday, September 2, 2019

एक लम्हा जैसे बरसों...





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एक लम्हा जैसे बरसों
के जाल में रुका रुका सा है I 

एक सपना जैसे क़िस्सों के
रूमाल में ढँका ढँका सा है I

एक चंद्र जैसे हिस्सों
के ख्याल में फँसा फँसा सा है I

एक सूरज जैसे किस्मत
के अयाल में धंसा धंसा सा है I

4 comments:

  1. Very nice thoughts,specially loved the first two lines.

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  2. कविता की सराहना के लिए धन्यवाद संजय जी !

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