वो आँख बाँध देता है...
वो आँख बाँध देता है,
और देखने को कहता है I
वो जीभ बाँध देता है,
और बोलने को कहता है I
वो कान बाँध देता है,
और सुनने को कहता है I
वो हाथ बाँध देता है,
और तैरने को कहता है I
वो पाँव बाँध देता है,
और नाचने को कहता है I
फिर...
वो आस बाँध देता है,
और जीने को कहता है I
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अच्छा विरोधाभास व्यक्त किया है। सचमुच कभी कभी जीवन ऐसा हीं लगता है।
ReplyDeleteधन्यवाद रेखा जी!
DeleteShayad, ummidon se duniya kayam hai ye sikhata hai.
ReplyDeleteIronic are the ways of life.
Atyant taral aur ashay purna kavita, Neeraji. Sundar!
Bahut abhar Anagha.
DeleteBahut khub!
ReplyDeleteDhanyawad Mridula Jee.
DeleteSometime it happens in life...very nice presentation.
ReplyDeleteThanks Jyotirmoy.
DeleteWho is this person, you are so upset with?
ReplyDeleteHa ha ha...it is called GOD...NATURE that govern our lives.
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