Monday, February 4, 2019

ऐसा नहीं है के...




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ऐसा नहीं है के...
मैं बात नहीं करना चाहता,
पर...

 हालात रोक देते हैं I

ऐसा नहीं है के...
मैं मिलना नहीं चाहता,
पर...
ये उलझे दिन रात रोक देते हैं I

ऐसा नहीं है के...

 मैं रोना नहीं चाहता,
पर...

 उनकी आँखों के सैलाब रोक देते है I

ऐसा नहीं है के... 
मैं सोना नहीं चाहता,
पर... जो पीछे छूट जाएँगे,
उनके आज़ाब रोक देते हैं I
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12 comments:

  1. Vivashata ke karan hajar... Soulful creation!

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  2. बहुत सी मन की बातें हम नहीं करते। कुछ ना कुछ रोक देती हैं । पर मन का भी कर लेना चाहिये। अच्छी सी कविता।

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  3. कविता की सराहना के लिए आभार रेखा जी I

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  4. बहुत सुंदर कविता नीरज । सच है - हम मन की बात मन में ही छुपाते है।

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