ऐसा नहीं है के...
मैं बात नहीं करना चाहता,
पर...
हालात रोक देते हैं I
ऐसा नहीं है के...
मैं मिलना नहीं चाहता,
पर...
ये उलझे दिन रात रोक देते हैं I
ऐसा नहीं है के...
मैं रोना नहीं चाहता,
पर...
उनकी आँखों के सैलाब रोक देते है I
ऐसा नहीं है के... मैं सोना नहीं चाहता,
पर... जो पीछे छूट जाएँगे,
उनके आज़ाब रोक देते हैं I
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Loved it.
ReplyDeleteThanks Jyotirmoy
DeleteVivashata ke karan hajar... Soulful creation!
ReplyDeleteThanks Anagha for appreciation of the post.
DeleteWonderful poem!
ReplyDeleteThanks S.Singh Jee.
DeleteNice poem.
ReplyDeleteThanks Abhijit.
Deleteबहुत सी मन की बातें हम नहीं करते। कुछ ना कुछ रोक देती हैं । पर मन का भी कर लेना चाहिये। अच्छी सी कविता।
ReplyDeleteकविता की सराहना के लिए आभार रेखा जी I
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता नीरज । सच है - हम मन की बात मन में ही छुपाते है।
ReplyDeleteआभार वर्षा !
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