उसने उसको पागल कह दिया,
और अंजाने में खुद को जाहिल कह दिया I
पागल होना भी उस शंकर का खेला है,
जिसके पास विष और अमृत दोनो का मेला हैI
पागलपन में शंकर का अंकुर है,
जो सती के लिए विक्षिप्त हुआ,
जो कृति के लिए संलिप्त हुआ I
फिर पागलपन हमको क्यूँ खलता है,
क्यूँ पागल होना सस्ता है I
पागल होना ईश्वर के संग होना है,
पागल होना शंकर के संग रोना है I
पागलपन भी शंकर का है एक रूप,
पागलपन भी शंकर के छाया की एक धूप I
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पागल होना शंकर के संग रोना है I
पागलपन भी शंकर का है एक रूप,
पागलपन भी शंकर के छाया की एक धूप I
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bahut khoob
ReplyDeleteDhanyawad Pushpendra Jee
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