सूरज ढल गया साहब
ज़माना बदल गया साहब
कभी उड़ते थे आसमानों में
कभी हम भी थे पहचानों में
पर सूरज ढल गया साहब
ज़माना बदल गया साहब
कभी तारों से करते थे बातें
कभी आवारों सी कटती थी रातें
पर सूरज ढल गया साहब
ज़माना बदल गया साहब
कभी दौड़ते थे सन सन
कभी ऐंठते थे तन तन
पर सूरज ढल गया साहब
ज़माना बदल गया साहब
कभी हर कोई था हमसे छोटा
कभी हर एक का सिक्का था खोटा
पर सूरज ढल गया साहब
ज़माना बदल गया साहब
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