Wednesday, August 21, 2019

ना जाने कितने... आकाश बांधता है आदमी




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एक उम्र में कई...
जनम जीता है आदमी,
जन्नत कम और ना जाने कितने
जहन्नुम जीता है आदमी I

एक साँस में कितने आस,
बांधता है आदमी,
ज़मीनें कम...पर ना जाने कितने,
आकाश बांधता है आदमी I
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22 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 22 अगस्त 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. इस सम्मान के लिए बहुत आभार रवीन्द्र जी!

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  2. वाह!!!
    क्या बात !!!

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  3. चंद पंक्तियों में समेटा जीवन का सार, वाकई लाज़बाब सृजन है सर
    सादर

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  4. गागर में सागर ! बहुत खूब नीरज जी !

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  5. ज़मीनें कम...पर ना जाने कितने,आकाश बांधता है आदमी। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, नीरज।

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  6. बहुत खूब ...
    एक ज़मीन और कितने आकाश ... क्योंकि कल्पनाओं का संसार आकाश है ... सपनों का संसार आकाश है तो अनेक तो होने ही हैं ...
    अच्छी और सार्थक रचना ...

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  7. कविता की सराहना के लिया धन्यवाद दिगंबर जी!

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  8. Superb one depicting the truths of life....Loved it a lot.

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  9. Thanks a lot Jyotirmoy for appreciation of the post.

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