probinglife
Friday, August 30, 2019
एक ज़माना लगता है...
एक ज़माना लगता है,
ईट ईट सवरने में I
एक बहाना लगता है,
रेत रेत बिखरने में I
कितनी रातें लगती हैं,
आसमान को तारा तारा करने में I
बस कुछ बातें लगती हैं,
अरमानों को आवारा कहने में I
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Wednesday, August 21, 2019
ना जाने कितने... आकाश बांधता है आदमी
एक उम्र में कई...
जनम जीता है आदमी,
जन्नत कम और ना जाने कितने
जहन्नुम जीता है आदमी I
एक साँस में कितने आस,
बांधता है आदमी,
ज़मीनें कम...पर ना जाने कितने,
आकाश बांधता है आदमी I
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Saturday, August 17, 2019
रुकना ज़रूरी है...
रुकना ज़रूरी है,
चलते जाने के लिए,
बुझना ज़रूरी है,
जलते जाने के लिए ,
ऐसा हमें लगा था,
पर ज़िंदगी मेरी गुलाम
थोड़े ही है...
मेरी हां में हां मिलाते जाने के लिए I
Thursday, August 15, 2019
कभी सोचता हूँ के...
कभी सोचता हूँ के...
जो कोई लड़ता हीं नहीं
तो आकाश भी ज़ंज़ीरों में होती,
तो प्रकाश भी पहरों में होता, और
स्वास भी अंगारों से होकर गुज़रता I
कभी सोचता हूँ के...
जो कोई मरता हीं नही
तो नन्हे क़दमों से
ज़िंदगी कैसे दौड़ती
कोमल होठों पे
हँसी कैसे तैरती
और
मासूम आँखों में
आज़ाद
उड़ान कैसे सोती I
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Wednesday, August 14, 2019
खूब चले हम...
खूब चले हम,
सपनों को भिंचे I
खूब चले हम,
कदमों को खींचे I
खूब चले हम,
राहों को सींचे I
पर फिर भी ना जाने क्यूँ,
हम रह गये पीछे...नीचे !
Saturday, August 10, 2019
बरसों से इंतेज़ार था...
इस हुंकार का,
इस दहाड़ का,
बरसों से इंतेज़ार था I
मिट्टी के इस आकार का,
सपनों के इस साकार का,
बरसों से इंतेज़ार था I
दूरियों के मिटने का और...
लकीरों के सिमटने का,
बरसों से इंतेज़ार था I
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