हमने आँखों से नींद...
का खो जाना देखा है,
जो लबों तक आते आते,
रह गया वो पैमाना देखा है I
हमने साँसों में शीशे,
का घुल जाना देखा हैI
हमने प्यासों का साग़र,
में मार जाना देखा है I
हमने उदास आँखों का,
बरबस भर जाना देखा है I
हमने उफनते साहस का,
भी एकबारगी सिहर जाना देखा है I
हमने अपना होते बेगाना देखा है,
सपनों का मर जाना देखा है,
साहब हमने ज़माना देखा है I
भी एकबारगी सिहर जाना देखा है I
हमने अपना होते बेगाना देखा है,
सपनों का मर जाना देखा है,
साहब हमने ज़माना देखा है I
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Amazing! Thank you for sharing this.
ReplyDeleteThanks S Singh Jee.
Deleteजिंदगी की सच्चाई बहुत ही सुंदर तरह से साझा की नीरज 👌👌
ReplyDeleteधन्यवाद वर्षा !
Deleteबहुत अच्छी लिखी कविता नीरज।
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन !
Deleteजिंदगी की कड़वी सच्चाई को बहुत ही खूबसूरतती से व्यक्त किया हैं आपने।
ReplyDeleteधन्यवाद ज्योति जी !
DeleteJust awesome...specially loved the last stanza.
ReplyDeleteThanks jyotirmoy for appreciation of the post.
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