Saturday, May 18, 2019

एक अजीब सी चुप्पी है





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एक अजीब सी चुप्पी है,
जो कानों को चीरती है I

एक अजीब सी खामोशी है,
जो आडंबर की भाषा बोलती है I

जो चिल्लाते रहे की उनको डर लगता है हिंदोस्ताँ में,
वो मौन हैं आज एक नृशंस अभियान पे I

जो बाप मरा... जो बेटी डरी, ये भी दुनिया ने देखा है,
पर ना जाने क्यूँ वो आज मौन हैं जिन्होने इंसानियत का ले रखा ठेका है I

10 comments:

  1. I have found your poems profound and they strike a chord with me. I thoroughly enjoy coming to your blog and spending some time here. This is another great one! Keep them coming.

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    1. Thanks a lot Dipali for your wonderful words of appreciation.

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  2. यही शश्वत सत्य है। जब सच को बोलने में भय हो तब चुप्पी छा जाती है। कौन आज सच को सहारा देता है? जानते सब हैं पर मौन रहते हैं।
    अच्छी अौर सच्ची अभिव्यक्ति।

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  3. I really like this poem.Great thought and fantastic choice of word great.

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  4. bilkul sahi kahaa...nice presentation as usual.

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  5. बहुत ही प्रभावशाली कविता नीरज।

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