वक़्त गुज़रा भी,
पर ज़िंदगी थमी रही I
कुछ ऐसा हुआ के,
खुशियाँ आईं भी,
पर आँखों में नमी रही I
कुछ ऐसा हुआ के,
कुछ चेहरे मिले भी,
पर क़ुरबत की कमी रही I
कुछ ऐसा हुआ के,
बाज़ार मिला भी,
पर व्यापार की कमी रही I
कुछ ऐसा हुआ के,
फूल खिले भी,
पर खुश्बू से बनी नही I
कुछ ऐसा हुआ के,
क़तरा क़तरा जोड़ दिया,
पर ख्वाब को मिली जमीं नहीं I
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क़ुरबत : नज़दीकियाँ
Very nicely written. This happens many time in life...
ReplyDeleteThanks Ranjana Jee for appreciating the post.
ReplyDeletewow Neeraj, you are great. such a beautiful lines written. rhymed so well.
ReplyDeleteFeels nice…it is raining accolades from Bhawana. Thanx a lot Bhawana for being so wonderful.
ReplyDeleteएक और अच्छी कविता 👍 नीरज। हमेशा लिखते रहो।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सचिन!
ReplyDeleteSounds like life!
ReplyDeleteYes!
ReplyDeleteThanks Mridula Jee for appreciating the post.
बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteधन्यवाद ज्योति जी!
ReplyDeleteBahut he khub,har lafz saccha hai.Kai baar aisa hota hai par hum aise keh nahin paate.
ReplyDeleteDhanyawad Indu jee is protsahan ke liye.
ReplyDeleteयह कविता दिल को छू गयी ...बहुत स्पर्शपूर्ण...यह जीवन में कई बार होता है...
ReplyDeleteबहुत अच्छा नीरज
बहुत बहुत आभार वर्षा!
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