Thursday, November 1, 2018

कुछ ऐसा हुआ के...



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कुछ ऐसा हुआ के,
वक़्त गुज़रा भी,
पर ज़िंदगी थमी रही I

कुछ ऐसा हुआ के,
खुशियाँ आईं भी,
पर आँखों में नमी रही I

कुछ ऐसा हुआ के,
कुछ चेहरे मिले भी, 
पर क़ुरबत की कमी रही I

कुछ ऐसा हुआ के, 
बाज़ार मिला भी,
पर व्यापार की कमी रही I

कुछ ऐसा हुआ के,
फूल खिले भी,
पर खुश्बू से बनी नही I

कुछ ऐसा हुआ के, 
क़तरा क़तरा जोड़ दिया,
पर ख्वाब को मिली जमीं नहीं I

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क़ुरबत : नज़दीकियाँ 

14 comments:

  1. Very nicely written. This happens many time in life...

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  2. Thanks Ranjana Jee for appreciating the post.

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  3. wow Neeraj, you are great. such a beautiful lines written. rhymed so well.

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  4. Feels nice…it is raining accolades from Bhawana. Thanx a lot Bhawana for being so wonderful.

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  5. एक और अच्छी कविता 👍 नीरज। हमेशा लिखते रहो।

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  6. बहुत बहुत आभार सचिन!

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  7. Yes!

    Thanks Mridula Jee for appreciating the post.

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  8. बहुत सुंदर रचना।

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  9. धन्यवाद ज्योति जी!

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  10. Bahut he khub,har lafz saccha hai.Kai baar aisa hota hai par hum aise keh nahin paate.

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  11. Dhanyawad Indu jee is protsahan ke liye.

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  12. यह कविता दिल को छू गयी ...बहुत स्पर्शपूर्ण...यह जीवन में कई बार होता है...
    बहुत अच्छा नीरज

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  13. बहुत बहुत आभार वर्षा!

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