Friday, November 9, 2018

कहीं तो उड़ने को पूरा आकाश है...



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कहीं तो उड़ने को पूरा आकाश है,
तो कहीं रेंगना
हीं उपलब्ध प्रयास है I

कहीं तो कपटता हीं उच्च विन्यास है,
तो कहीं निष्ठा भी पूर्ण उपहास है I

कहीं तो इंसान हीं करता निराश है,
तो कहीं पत्थर से हीं आस है I

कहीं तो दिन हीं बोझिल बनवास है,
तो कहीं रात भी झिलमिल उजास है I

कहीं तो गागर को तृप्ति का एहसास है,
तो कहीं सागर को अतृप्त प्यास है I

कहीं तो जीवन अटल विजयी विश्वास है,
तो कहीं ज़िंदगी...
अटकल है, तुक्का है, कयास है I

12 comments:

  1. wow so thoughful lines, but so true and meaningful.

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  2. Thanks Bhawana for appreciating the post.

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  3. बहुत अच्छी तरह लिखित कविता नीरज 👍

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  4. बहुत बहुत आभार सचिन!

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  5. जीवन की वास्तविकता पर अच्छी तरह लिखित कविता.....नीरज

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    1. बहुत बहुत आभार वर्षा!

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  6. Life is a combination of sometimes agreeable, sometimes not-so-agreeable contrasts.
    Your poem has beautifully brought it out.

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  7. Thanks Sir for visiting the post and appreciating it.

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  8. बहुत धन्यवाद ज्योति जी!

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