कहीं तो उड़ने को पूरा आकाश है,
तो कहीं रेंगना हीं उपलब्ध प्रयास है I
कहीं तो कपटता हीं उच्च विन्यास है,
तो कहीं निष्ठा भी पूर्ण उपहास है I
कहीं तो इंसान हीं करता निराश है,
तो कहीं पत्थर से हीं आस है I
कहीं तो दिन हीं बोझिल बनवास है,
तो कहीं रात भी झिलमिल उजास है I
कहीं तो गागर को तृप्ति का एहसास है,
तो कहीं सागर को अतृप्त प्यास है I
कहीं तो जीवन अटल विजयी विश्वास है,
तो कहीं ज़िंदगी...
अटकल है, तुक्का है, कयास है I
wow so thoughful lines, but so true and meaningful.
ReplyDeleteThanks Bhawana for appreciating the post.
ReplyDeleteबहुत अच्छी तरह लिखित कविता नीरज 👍
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सचिन!
ReplyDeleteExcellent
ReplyDeleteThanks Bhagwat for visit and comment.
Deleteजीवन की वास्तविकता पर अच्छी तरह लिखित कविता.....नीरज
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार वर्षा!
DeleteLife is a combination of sometimes agreeable, sometimes not-so-agreeable contrasts.
ReplyDeleteYour poem has beautifully brought it out.
Thanks Sir for visiting the post and appreciating it.
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद ज्योति जी!
ReplyDelete