रात का पहर,
धुँधले चाँद का असर ,
मंज़िल दूर का शहर ,
रास्तों में रिसता सा क़हर ,
कौन जाने कैसा हो आगे ये सफर !
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ज़िन्दगी खोती मिलती एक चीज़ हो गई,
ज़िन्दगी रेत में मिलती तेहज़ीब हो गई ,
और कश्तीओं का नसीब बस डूबना हीं था,
ज़िन्दगी किनारों को तरसती अजीब हो गई I