चित्र साभार :https://littleindia.com/keralite-nris-turn-towards-posh-old-age-homes-parents/
सोचता हूँ अक्सर, अंधेरे में रहना, गुमनामी पिरोना, अकेलापन सहेजना, हर कम्पन सहना, फिर भी कुछ ना कहना, रहते हमेशा दबकर, सहते सबकुछ हंस कर, सोचता हूँ अक्सर, के किस मिट्टी के होते हैं, ये नींव के पत्थर !
Just mind blowing....bahut khub.
ReplyDeleteThanks Jyotirmoy for your appreciative words.
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteआभार ज्योति जी!
Deleteनींव के पत्थरों (या नींव की ईंटों) की बात ही कुछ और होती है नीरज जी । आसान नहीं है उनके जैसा नि:स्वार्थ बलिदानी बनना । बहुत अच्छी बात कही है आपने ।
ReplyDeleteधन्यवाद जितेंद्र जी !
Deleteस्यय्द इसी के लिए इन्हें नीव का पत्थर कहते हैं ... खुद मिट जाते हैं और दूसरों को खड़ा रखते हैं ...
ReplyDeleteजी हाँ... ब्लॉग पे आपके आगमन के लिए धन्यवाद दिगंबर जी!
DeleteThanks Sonal!
ReplyDeleteBut they should not be taken for granted!
ReplyDeleteTrue...thanks for the visit to the blogsite Mridula Jee.
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