सब कुछ तो किया ,
पर कुछ ना हुआ I
ये होना इतना
तिलिस्मि क्यूँ है,
ये होना होता
क्या है?
चलना तो माने
नहीं रखता है,
कहीं पहुँचना
हीं माने रखता हैI
वो कहते हैं
इंतेज़ार करो
लेकिन कब
तक ?
इधर तो सब
धुआँ धुआँ होता है I
क्या पता
कब होगा ये होना हमारे साथ?
जैसे सबका
होता है I
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