probinglife
Sunday, February 2, 2020
अंज़ाम सोच के कहाँ ...
अंज़ाम सोच के कहाँ
आगाज़ की जाती है ज़िंदगी I
टूट के, बिखर के हीं
कई बार...
परवाज़ की जाती है ज़िंदगी I
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