Tuesday, December 18, 2018

पता नहीं मैं हूँ की नहीं...



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सब बात तुझमें हैं,
सारी औकात तुझमें हैं,
तो पता नहीं... मैं हूँ की नहीं I

सारी सच्चाई तुझमें है,
सारी परछाई तुझमें है,
तो पता नहीं... मैं हूँ की नहीं I

सारी इज़्ज़त तेरी है,
सारी मशिय्यत तेरी है ,
तो पता नहीं... मैं हूँ की नहीं I

सारी अज़्मत तेरी है,
और सारी तोहमत मेरी है,
तो पता नहीं... मैं हूँ की नहीं I

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मशिय्यत: इच्छा,चाहत
अज़्मत: महानता

6 comments:

  1. बहुत अच्छी कविता नीरज

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद सचिन!

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  3. वाह !!! क्या बात है। बहुत कूब।

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  4. धन्यवाद रेखा जी!

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  5. lovely, beautiful read for the day

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  6. Thanks Bhawana for your visit and appreciation of the post.

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