Thursday, December 2, 2021

कौन जाने कैसा हो आगे ये सफर !

 रात का पहर, 

धुँधले चाँद का असर ,

मंज़िल दूर का शहर ,

रास्तों में रिसता सा क़हर ,

कौन जाने कैसा हो आगे ये सफर !

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Thursday, January 14, 2021

ज़िन्दगी खोती मिलती एक चीज़ हो गई...

 

ज़िन्दगी खोती मिलती एक चीज़ हो गई,

ज़िन्दगी रेत में मिलती तेहज़ीब हो गई ,

और कश्तीओं का नसीब बस डूबना हीं था,

ज़िन्दगी किनारों को तरसती अजीब हो गई I 

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