Monday, October 8, 2018

हाँ मैं मिलना चाहता हूँ...






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हाँ मैं मिलना चाहता हूँ,
उस सूरज से जो सागर, 
के गोदी का बच्चा है,
जो दुनिया के पहले,
इंसान सा सच्चा है I

हाँ मैं मिलना चाहता हूँ, 
बरफ के उस चादर से, 
जिसने छुपाया है,
मानव मूल का रहस्य,
बड़े आदर से I

हाँ मैं मिलना चाहता हूँ, 
तारों के उस मेले से,
जो ले जाता है दूर,
मुझे ज़िंदगी के झमेले से I

हाँ मैं मिलना चाहता हूँ,
सेब, अंगूर की उस हरियाली से,
जो मिलवाता है हर रोज़,
दुनिया को उसकी दीवाली से I

हाँ मैं मिलना चाहता हूँ,
कैलाश के उन शिखरों से,
जिसकी बयार ने बातें की थी,
शिव के  कुन्तल निकरो से I


#TheBlindList   #SayYesToTheWorld
 

कुन्तल : केश, बाल

निकर : झुंड, समूह 

6 comments:

  1. हाँ मैं मिलना चाहता हूँ,
    बरफ के उस चादर से,
    जिसने छुपाया है,
    मानव मूल का रहस्य,
    बड़े आदर से....बहुत सुन्दर भाव

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  2. धन्यवाद योगी सारस्वत जी !

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  3. बहुत सुंदर कविता

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  4. धन्यवाद सचिन !

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  5. अच्छी कविता लिखी नीरज

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  6. बहुत बहुत आभार वर्षा!

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